नन्हे-नन्हे हाथों में वह छाले देख मन रोता है,
इनकी सूनी आँखों में भी कहीं एक सपना रहता है..
व्यथा इनकी गहरी है यहाँ अरमान डूबाया जाता है,
एक दो वक़्त की रोटी को इंसान दबाया है..
कोयले की खानों में ही हीरे अक्सर मिलते हैं,
खैर तराशे नहीं जाते, यहाँ तो कोयले ही बिकते हैं..
कभी गौर से देखो तो समझो, कोयला नहीं जो तपता है,
यह तो आंच है दुर्भाग्य की जिसमे भोला बचपन जलता है...
छोटे से इन बच्चों से सर्कस की बढती शान है,
खेल में ताल-मेल बैठाते अद्भुत इनके कमाल हैं..
कभी गौर से देखो तो समझो, यह ताल-मेल गुम है इनके जीवन में,
कलम पकड़ने की उम्र में इन्हें करतब सिखाया जाता है..
लोगों को नाच दिखाते, देख इन्हें मन कहता है,
यहाँ बीच सड़क अभिशाप की थाप पर तांडव होता है..
कभी गौर से देखो तो समझो, यह नृत्य नहीं है उमड़ा हुआ,
एक बार इन्हें भी जीने का अवसर मिलना क्या उचित नहीं?
अपनी हित पूर्ति के लिए क्या इनका बलिदान अनुचित नहीं?
कभी गौर से देखो तो समझो, ये अँधकार में घिरे हुए,
अँधेरे के बाद ही तो एक नया सूर्य उदय होता है...
Amazing thought ....Mukesh u r doing grt job...keep it up!...
ReplyDeleteVery well done ! great words with feelings...keep going ...
ReplyDeletereally yaar mukesh touched my soul
ReplyDeletereally magical words