प्रेम के प्रति मेरी बस यही राय है कि
रात (जिसके पास चाँद है) की सुबह हो जानी है।
लोग जो कब्रों में दफना दिए गए थे
मरणोपरांत उनकी डैक पर गुलाब रखे जाते हैं।
चूँकि पूरी देह के जल चुकने के बाद भी अस्थियाँ बची रह जाती हैं,
उन पर आत्मा का प्रभाव शेष रहता है,
अत: उन्हें जीवित ही नदी में स्वाहा दिया जाता है!!
कल्पनाओं के तीव्र घोड़ों पर सवार भावनायें भयातुर रहती हैं,
उनके गिर जाने का डर बना रहता है!
व बिजली कड़कने मात्र से बरसात डरावनी लगने लगती है,
अन्यथा अद्धपकी फसलों पर गिरी पहली बूँद का स्वाद मीठा ही होता है!!
प्रेम खुद में पनपने वाला एक ऐसा संक्रमण है
जिसका "बिछड़ने" वाली प्रक्रिया से कोई लेना देना नहीं होता!!
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