मुहब्बत हर बार ही ज़ाया नहीं जाती,
ग़म-ए-हिज्र अब शराब से पर टाली नहीं जाती !
आती है तेरी याद, क्योंकर खबर नहीं आती
यारा ने बेखबर पर शायद हर बात नहीं जाती !
लिख-लिख के कूचे पे तेरे भेजा किये हैं नाम्बर
ग़र पढ़ते भी हो फिर क्यों हमें हिचकी नहीं आती !
कुछ तो है जो रोकता है तुझको पेशक़दमी से
ऐसा नहीं के जी में तेरे इक बार नहीं आती !
ग़म-ए-हिज्र अब शराब से पर टाली नहीं जाती !
आती है तेरी याद, क्योंकर खबर नहीं आती
यारा ने बेखबर पर शायद हर बात नहीं जाती !
लिख-लिख के कूचे पे तेरे भेजा किये हैं नाम्बर
ग़र पढ़ते भी हो फिर क्यों हमें हिचकी नहीं आती !
कुछ तो है जो रोकता है तुझको पेशक़दमी से
ऐसा नहीं के जी में तेरे इक बार नहीं आती !
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