Thursday, December 19, 2013

रैंडम थॉट्स

1. क्योंकि जैसा-जैसा लिखा गया है वैसा-वैसा समझने के लिए सेम स्टेट ऑफ़ माइंड में होना ज़रूरी है, तो लिखना अगर फिलॉस्फी है तो पढ़ना सईकोलॉजी।

2. मुझे रात से कोई खतरा नहीं,
मेरी चिंता का विषय चाँद का निकल आना है..
रिक्त जगहों पर उस चीज़ का ना होना प्रेम है, उस चीज़ का हो आना विरक्ति...!!

3. एक "पोर्ट्रेटिस्ट" केवल अनुसरण ही नहीं करता बल्कि अपनी जबरदस्त अवलोकन शक्ति, अद्वितीय बौधिक स्तर, सूक्ष्म विस्तृत वर्णन व अनूठे द्रष्टिकोण से रच देता है एक पूरी काया, भाव युक्त। 
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बीते दिन कभी "दर्पण" ने सुझाया था "कुछ डिटेलिंग कमज़ोर हुई है।" 

4. "लौट के बुद्धू घर को आये,
जो नहीं आये वो "बुद्ध" हो गए।"

5. साफ़ सुथरे कपड़ों के पीछे अश्लील हृदय रखने से लाख गुना अच्छा है ईमानदारी से नंगा जीना।


6. लिखना न किसी का मन बहलाना है, न क्रांति लाना, न किसी को प्रभावित करना, न किसी से तारीफ पाना, लिखना ईमानदारी से खुद को बयां करना है और कुछ नहीं, मिलावट यहाँ भी उतनी ही अखरती है जितना कि स्वादिष्ट दाल खाते हुए अचानक छोटा सा पत्थर चबा जाना, या सुन्दर गेहूं में घून का पाया जाना।

7. "मुझे जीने का सलीका नहीं आता"

मुझे सलीका नहीं आता जब मैं नमस्कार कहता हूँ तो हाथ नहीं जोड़ता। जब किसी के प्रति स्नेह महसूसता हूँ तो ज़ाहिर नहीं कर पता। जब सामजिक सभाओं या गोष्ठियों में पहुँचता हूँ तो संकुचित रहता हूँ व तड़ाक-भड़ाक वाले माहोल में असहज हो जाता हूँ। बुद्धिजीवियों के बीच दम घुटने लगता है, साँसे तेज़ हो जाती हैं, दिल निकलने लगता है और जब ऊलजलूल लोगों के मध्य घिरा होता हूँ तो हर पल डरा रहता हूँ। जब कोई मुझ पर किसी भी तौर से अपना प्रभाव ज़माने कि कोशिश करता है तो उस पर दया आने लगती है पर जब कोई मुझसे प्रभावित होता दिखता है तो शर्मिंदगी महसूस होती है। जब कोई अध्यात्म व भक्ति कि बात करता है तो अट-पटा महसूस करने लगता हूँ पर जब कोई विज्ञान कि बात करें तो निशब्द हो जाता हूँ। जब कोई किसी देश, राज्य या क्षेत्र कि राजनीति पर चर्चा करे तो मैं नागरिक नहीं रह पता परन्तु जब किसी भी तरह के सरकारी सुविधा से खुद को वंचित पाता हूँ तो शिकायत करने लगता हूँ। न मैं अग्रजों के बीच सहज हूँ न मैं अनुजों से ही खुल पाता। जब किसी को अत्यधिक भावनात्मक देखता हूँ तो उसको वास्तविकता का ज्ञान देता हूँ और एकांत मैं खुद को कल्पनाओं व भावों के मध्य घिरा पाता हूँ। खुद को भीड़ में भी अलग देखता हूँ पर जब कोई साथ न हो स्वं एक भीड़ हो जाता हूँ, जब किसी दूसरे पर बीती हो तो मैं सांत्वना देने लगता हूँ परन्तु जब स्वं अनुभव करता हूँ तो टूट जाता हूँ। मैं आधार हो जाना चाहता हूँ परन्तु समय-समय पर खुद को दूसरों पर आधारित पाता हूँ। मैं बहुत सादगी से जीना चाहता हूँ परन्तु पल-पल बेहद उलझा हुआ जीता हूँ।
सच है जीता तो हूँ पर मुझे जीना का सलीका नहीं आता। 


8. मुझे तू कह कर बुलाना, गाली बकना, देहलीज़ पर बिठाना, मेरे लगे हुए को अशुद्ध समझना, मेरे बर्तन अलग रखना व मुझसे ही मंजवाना, मुझे कभी पैलाग, नमस्कार न कहना, अपने मंदिरों के अन्दर न घुसने देना,
जो भी करना पर मैं इंसान हूँ मुझे कभी ब्राह्मण न समझ लेना,
मुझे पक्ष-पात कतई पसंद नहीं।



9. जब मैं किसी अपने को कहता हूँ कि तुम गलत हो तो वो मुझे पहचानने से इन्कार कर देता है।



10. लिखना कोई हुनर नहीं, बल्कि खुद को सटीक अभिव्यक्त करना ही लेखनी कि सुंदरता है, जो लेखन में शब्दों, उपमाओं, अलंकारों को ढूंढने का प्रयास करता है वह अक्सर अभिव्यक्ति को अनदेखा कर देता है।



11. इस दुनिया में हर वो शख्स जो खुद को सभी मोह-माया, विषय, विलास, भोग, विश्वास, उम्मीद, 
आस, संगीत, नृत्य, कला, प्रेम, चाह व चुपड़ी रोटी से अलहदा कहता है वह इन सभी का सबसे अधिक ज़रूरत-मंद है।



12. दुनिया कि कोई भी दौलत, शान-ओ-शौकत वो ख़ुशी नहीं दे सकती
जो दो दिन से लगायी जीबाई में चूहा फसने से मिलती है :D :)



13. एक लेखक से झूठा व मैनुपुलेटिव कोई नहीं,
ना ही एक अभिनेता से सच्चा व जुझारू कोई है।

अभिनेता की सच्चाई उसकी आँखों से परखी जा सकती है,
परन्तु लेखक को ऐसा कोई भय नहीं,
वह स्वछंद, निडर लिखता है।
जैसा चाहे वैसा सच गड़ता है।



14. मेरी सभी बुद्धिजीवियों से बस इतनी ही गुज़ारिश है,
क्या वे किसी "लाय डिटेक्टर टेस्ट" से गुजर सकते हैं कभी ??

नोट: मेरा यह विचार उन पर विशेषकर लागू होता है जो अपनी बायोग्राफी स्वं लिखते हैं।



15. किसी भी पेशे में, रिश्ते में या जीवन में अच्छा इंसान होना एक आदर्श है,
लेखक हो या लिखना शौक हो तो ये उत्तरदायित्व और भी बढ जाता है। 



16. जीवन वेदना है मौत संवेदना!!



17. इंसान ज़लालत, बईमानी, शिकवे, रंजिश, दर्प, विषाद से लबरेज़ लज़ीज़ गोश्त है।

जबकि ईद, होली, दिवाली भी इंसानों की ही आती हैं,
पशुओं की तो बेवक्त बेवजह बस मौत ही आती है। 



18. अकसर प्रेम की कवितायें लिखने से बचता हूँ,
प्रेम पर क्या-क्या न लिखूं सोच कर
निशब्द हो जाता हूँ।

 हर बार स्मृतियाँ, अनुभव व भावनायें 
अभिव्यक्ति-बद्ध ही नहीं रहते।



19. शिक्षा व अशिक्षा समाज की देन होती है,
जिसे समाज न समझे वो अशिक्षित
जो समाज को पढ़ ले वो शिक्षित..!!
जो किसी को न समझे वो बुद्धिमान,
जिसे कोई न समझे वो मूर्ख...

20. भारत में "आई मीन" और "यू नो" के बीच की खायी को कभी पाट नहीं पाई ये अंग्रेज़ी भाषा।
 विचारों का आभाव कहें, ट्रेंड कहें या विदेशी भाषा में बतियाने का यूनिक अंदाज़।
 "आई मीन, आई डोंट अंडरस्टैंड!!"



21.  चुभती रहती हो हर पल काँटों सी 
खिल भी जाती हो अक्सर फूलों सी 
ज़िन्दगी तुम बेरंग हो कर भी कितनी रंगीन नज़र आती हो। 

22. अपने पेचीदा से दिखने वाले सपनो की मानिंद उलझे लम्बे बालों को कटवा दिया है।
अब उम्मीदें सिर्फ सपनो से ही शेष हैं

23. अपेक्षाओं के पिंजरों से आज़ाद हुए परिंदे ही,
असल उड़ान भर पाते हैं,
असल आसमान चख पाते हैं। 

24. सुझाव वही जिसमे निष्कर्ष हों,
तुक्का-बाज़ी तो यहाँ नेता हर रोज़ करते हैं।

25. "चर्चा" को खतरा उन लोगों से कतई नहीं है जिन्हें ज्ञान न हो और जो चुप रह जायें,
बल्कि उन लोगों से है जिन्हें ज्ञान भी न हो और जो बोलना भी न छोड़ें।

26. असल में इस दुनिया में अगर "डिप्रेशन" नाम का कोई शब्द है तो उसके लिए "लीकेज" नाम का सोलुशन भी उपलब्ध है, ये अवसाद का रिसाव ही है जो "सृजन" के रूप में बाहर निकल जाता है। 

27. "अगर दुनिया कि हर जंग फूलों से लड़ी जाती तो आज फूलों की घाटी हिरोशिमा या नागासाकी में होती। प्रेम एक लंगड़ी क्रांति है और दर्द उसकी बैसाखी.."


28. सुनो जाते जाते ये यादें भी लेते जाना,
उधारी की रेज़गारियां बहुत खनकती हैं
बेवजह खलल पैदा होता है, 
यादें टपकते नल सी 
सोने देती हैं न जीने।

29. 
"अवसाद संवेदनशील जनों का गहना होता है

और आम पकने के बाद ही मीठा होता है।"

30. "सुनो किताबों से इतनी अधिक दूरी बना लेना की 

दुनिया में ज्ञान के अस्तित्व को पुनर्जीवित कर सको।"

31. देर रात तक जाग कर लिखना किसी बहुत ज़रूरी स्वप्न को मार कर लिखना होता है।


32."एक कवि अपने वर्तमान से बेतरह ग्रसित 

अकसर अतीत की जेबें खंगालता पाया जाता है या आगत की अवधारणा बुनते।"

33.
अकेले जीने के लिए कुछ चीज़ें अत्यंत अनिवार्य होती हैं 

एक कोरी नोट बुक, रुका हुआ पैन, 
सूखी आँख, ठहरती साँसें और खालीपन।

दरअसल शब्दों के मौन से उत्पन्न होती है एक उत्कृष्ट कविता, 

जबकि स्वर मात्र कविता लिखने का विफल प्रयास।

34.
विश्व कि सबसे अंतिम क्रांति पूर्ण शांति के लिए होगी,

व लाल रंग कि गरिमा को बचाये रखने के लिए 
सभी कामरेड गुलाब थामे आगे बढ़ेंगे।

35.
मैं भीड़ में सबसे अच्छा लिख पाता हूँ, 

शायद ये भीड़ ही मुझसे लिखवती है,
अकेला रहना खुद से प्रेम करना है, 
भीड़ में रहना खुद को पहचानना

36.
सुनो अब रंगों पर ख़ास भरोसा नहीं रहा...!! रंग कविता सरीखे होते हैं बहुत नीजी...मेरा लाल तुम्हारा लाल नहीं हो सकता...हरा जैसे तुम देख पाती हो मैं ठीक वैसा न देख पाऊं शायद... देखो जो तुम्हारा अनुभव है, जो तुम महसूस करती हो सिर्फ वही तुम्हारा सत्य है और वह जो तुमने किताबों में पढ़ा होता है या दूसरों से सुना होता है वह किसी दूसरे का.. जब तुम उससे जुड़ती हो तुम दूसरे के सत्य को अपना मान रही होती हो... वह मिथ्या है...समझो!! 

यह ठीक वैसा है कि क्लिफ जम्पिंग करने से पहले खुद को आखिर तक बचाए रखना व साथियों को कूदते हुए देखते कूदने के बाद की संभावनाओं का पूर्वानुमान लगाना


या फिर प्रेम में लिप्त किसी व्यक्ति से यह पूछना कि धोखा क्या होता है !!



[एक विशेष सन्देश]


37.

मुझे इंतज़ार करना बेहद पसंद है,
ये वक़्त उम्मीद से भरा होता है..!!

38.
स्वप्न देखना एक रिक्त स्थान भरने सरीखा होता है
जीवन के अभाव स्वप्नों के रूप में हमारे साथ रहते हैं..!

39.
हम अपने समूचे जीवन को इतना यादगार बना देना चाहते हैं कि हर पल के जिवंत होने की एक निशानी रख छोड़ते हैं..कविता, तस्वीरें, इंतज़ार व दुख।

सुख इतने चिकने होते हैं एक पल भी नहीं ठहरते!!

40.
हम अतीत के दुखों से गुज़र कर वर्तमान के क्षणिक सुखों पर सुस्ता 
आगत के दुखों की और बढ़ जाते हैं...
यह दुनिया अवसादों पर आधारित है!!

41.
"प्रेम एक कविता सरीखा होता है, निजी होते हुए भी बहुत व्यापक प्रभाव छोड़ता है।"

42.
हर वह मील का पत्थर जो यात्रा पथ पर पीछे छूट जाता है एक घट चुकी कहानी का सूचक है.. आने वाली कई और कहानियों का संचालक..!!

43.
हर एक चीज़ ऐसे याद आती है जैसे कल ही गुज़री थी,
जो कल गुज़री थी वो याद नहीं आती..!!

44.
कविता काबिल-ए-तारीफ नहीं
काबिल-ए-बयां होनी चाहिए !!

45.
तुमने उड़ने का शौक पाला और पहाड़ों पर भरोसा किया
गिरने से एक क्षण पहले तुम बहुत उचाईं पर रहे होगे।

46.
मेरे अभ्यास/प्रयास झूठला दिए गए हैं
सारे अनुभव नकारे जा चुके हैं,
सभी कयास खोखले करार दे दिए गए हैं,
व अब तक की लिखी सभी किताबों के हर शब्द पर लाल स्याही के घेरे है।

अब इस दुनिया में अपनी बुद्धिजीविता साबित करने के लिए मेरे पास
प्रेम करने के सिवा कोई भी दूसरा विकल्प शेष नहीं है !!

47.
अति एक क्रिया है..अति से कोई क्षति नहीं,
दुखद क्रियाहीनता है...
जिस तरह हानिकारक समय का निकलना नहीं बल्कि समय का अटक जाना है..!!

48.
रात उम्मीद से लबरेज़ वह जाम है जिसे पीते-पीते इंतज़ार कटता है
फिर अचानक सुबह होती है... सिरचढ़ी मदहोशी लिए...

"हैंग ओवर हर सूरत में नशे से बुरा होता है..!!"

49.
पत्थर सिर्फ ठोकरों तक सिमित नहीं हैं, उनकी भी यादाश्त होती है, रोज़ आते जाते तुम जिस पत्थर को ठोकर मारते हो एक दिन वही तुम्हारे तलुवे में चुभ जाता है..यहाँ कोई भी चीज़ बिना हिसाब के नहीं छूटती...!!

50.
सुबह होती है, रात आती है, मैं दिन में दो बार खाना खाता हूँ, एक-आध बार फोन भी बज जाता है और शाम को अक्सर टहलने भी निकल जाता हूँ....मेरे साथ सब कुछ व्यवस्थित रूप से ठीक ठाक घट रहा है परन्तु अब मैं आदी हो चुका हूँ, दुखी रहने का !!

-[एक किरदार]

51.
उजालों की उम्मीद अब बेकार है..जो फड़फड़ा रहा है वो दिया भी बुझा दो...चैन से सो जाओ कि ख्वाबों में कुछ नहीं रखा..!!

52.
सुनो तुम जानती हो न कि मैं तुम्हारे लिखे हर शब्द पर जान देता हूँ,
तो अबकी ग़र लिखना, सावधानी बरतना, ज़िन्दगी लिखना
मैं सुकून से मरना चाहता हूँ..!!

53.
वे कहानी पढ़ते पढ़ते भूल जाते हैं कि दुनिया में भाषा नाम का कोई माध्यम भी है, सच तो यह है कि वह कहानियां उनके साथ घट रही होती हैं.....वे कहानी में किरदार चुनते हैं.. सबसे पसंदीदा किरदार और उसके प्रेम में पड़ जाते हैं..वे हर पंक्ति के बाद एक गहरी सांस भरते हैं और न जाने किस सोच में डूब जाते हैं..!!
शब्द, व्याकरण, उपमाओं की प्रकृति क्रियाशील है परन्तु वे अपने हिस्से का ठहराव जीते हैं...!!

54.
तुम्हारा होना एक मात्र सत्य है..और वही मेरा ख्वाब भी...तुमने देखा होगा लोग कल्पनाओं से आकर्षित तो होते हैं पर घबराते हैं, उन्हें भ्रमित होने से डर लगता है, वे जाल में नहीं फसना चाहते..तुमने कभी मकड़ी के जाले देखें हैं...लगभग सभी घरों के कोनों में उग आते हैं..घर को साफ़ रखने के लिए लोग उन्हें हटा देते हैं..लेकिन सुनो मैं ऐसा नहीं करता..मुझे जाले पसंद हैं..और मेरी कल्पना पर भी उतनी ही आस्था है जितना कि तुमसे प्रेम..मुझे तुम्हारे प्रेम में डूब कर हर वो चीज़ करना पसंद है जिसका सामाज में विरोध है या जो मेरे बस से बाहर है जैसे कोई प्रेम कविता लिखना या अपनी आवाज़ में कोई मीठा सा गीत गुनगुनाना !!

"प्रेम रिकॉर्ड की हुई वो कर्कश आवाज़ है जिसमे न संगीत है, न कोई सुर है, न सरगम है..
हैं तो बस और बस एहसास..!"

55. जीवन का बायो डेटा अपडेट करने का समय आ गया है... 

सुनो ! तुम मेरे जीवन में दर्ज़ हो चुकी एक और असफलता हो !!   

56. 

प्रेम होने व प्रेम न होने में अंतर है ज़ाहिर होने व ज़ाहिर करने का.. बस इतना ही.. जहाँ प्रेम है वहां डूबना एक बात है... सूख चुकी नदी में कूद कर गोते लगाना, पत्थरों को गले लगा दिल की खरोंचों को कुरेदना है..!


छलरचना कुटिलों के तरकश में रखा एक अनिवार्य अस्त्र होता है..!!

57. 
ज़िन्दगी !
ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम,
एक "अवसाद" ज़रूरी है सनम !!

58.
 मुझे इस दुनिया की हर वो लड़की बेहद पसंद है जो प्रेम करती है, धोखा खाती है, रो देती है..प्रेम करती है, धोखा देती है और रो देती है...!!

59.
बुरे दौर में कविता का स्तर सुधर जाता है..
एक कवि व सुखी आदमी में सिर्फ इतना ही फर्क है..!!

60.
मैं चाह कर भी रोक न पाया खुद को दोहराने से कि गलती से सीख लेकर अगर गलती नहीं की तो जीवन में आपने कुछ नहीं सीखा !

61.
"आपको धक्का व धोखा उम्र के किसी भी पड़ाव पर मिल सकता है,
और उस स्थिति में आपके सभी अनुभव धरे के धरे रह जायेंगे !"

62.
"हमारी सारी ज़द-ओ-जहद यात्रा के आरम्भ बिंदु पर पहुँचने को लेकर है !!"

63.
अक्सर हमे खुद से जुड़ी कई-कई बातें तब पता चलती हैं जब उनकी एक्सपायरी निकल चुकती है...

64.
लिखना एक भद्दा मज़ाक है 
और मज़ाक एक बहुत संजीदा चीज़..!!

1 comment:

  1. behad sateek.. gehre.. jeevan ke vyavharik darshan se bharpoor... badhayi ho bandhu... ek survival-related self-help book likho.. best seller bh hogi

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