Thursday, April 17, 2014

"एक सामान्य सुबह"

मेरी आँखों के ठीक सामने एक दिवार है 
पैंसिल से कि लकीरों से भरी हुई..
मेरी तीन साल की भतीजी अब नज़रें चुरा रही है।

अन्दर रसोई में धीमी आंच पर दूध रखा है 
उसकी महक बाहर अगले कमरे तक जा रही है।

कमरे में दो कुर्सियां अब भी ऊंघ रही हैं कि उन पर 
अब तक कोई नहीं बैठा है।
बिस्तर करीने से बैड पर रखा है,
मेरी बड़ी भतीजी अब भी सो रही है।

सुबह का वक़्त है घर में शंखनाद हो रहा है,
मेरी माँ बाहर पौधों को पानी कर रही है,
क्यारी में दो गुलाब खिले हुए एक साथ मुस्कुरा रहे हैं,
सूरज मेरे घर से सिर्फ दो छलांग भर की दूरी पे है।

मैं बाहर बरामदे में बैठा हूँ,
कल रात की बरसात फाइबर वाली छत से अब भी टपक रही है,
मैं टपकती बूँदें देख रहा हूँ।
मेरे ठीक सामने मेरा बड़ा भाई अखबार पढ़ रहा है
उसने हाथ में चाय का गिलास पकड़ा है,

मैंने कलम पकड़ी है। 

2 comments:

  1. Apki kalam se subah samanay nahi rahi Mukesh ji Kuch khaas ban gayi :)

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