सुनो मुझे डर लग रहा है, वे लोग मुझे ढूंढ रहे हैं। वे हर जगह मौजूद रहते हैं, उनकी निगाहें मुझ पर ही गड़ी रहती हैं, उनका घूरना मुझे लाचार महसूस करवा देता है। मेरी खूबसूरती फीकी पड़ने लगी है, मैं कुरूप नहीं दिखना चाहती। नहीं वे मुझे मारना नहीं चाहते। उन्हें मेरे जिस्म से भी कुछ लेना देना नहीं है। उनके इरादे वहशी हैं, वे मुझे हर पल डरा हुआ देखना चाहते है। वे हालातों का जाल बिछाते हैं। वे दिखने में हैवान नहीं हैं, उनकी सूरतें अच्छी हैं, वे सुन्दर कपडे पहनते हैं, वे इंसान हैं। देखो ये कहते हुए मेरा पूरा शरीर थरथरा उठा है। हाँ वे इंसान ही हैं... मुझे असहज महसूस हो रहा है.. मेरे होंठ सूख रहे हैं.. हाँ वे इंसान हैं। मेरी दृष्टि धुंधली पड़ रही है... मेरा शरीर मेरा साथ छोड़ रहा है...
पानी, पानी, पा..न.. !!
...... पर तुम मुझे ऐसे क्यों घूर रही हो.. तुम अचानक इतनी बदसूरत कैसे हो गयी... तुम्हारे चेहरे पे इतनी शिकन क्यों है? मुझे घबराहट हो रही है.. तुम्हें ये क्या होता जा रहा है। तुम्हारा चेहरा पीला क्यों पड़ रहा है। देखो तुम्हारी नाक से खून भी बह रहा है... तुम किस सोच में डूब गयी.. कुछ कहती क्यों नहीं। तुम बेहोश हो रही हो, नहीं नहीं बेहोश नहीं, तुम्हारी साँसें चलना बंद क्यों हो रही हैं... क्या तुम मर रही हो, नहीं तुम मर नहीं सकती... नहीं नहीं नहीं !!
...... पर तुम मुझे ऐसे क्यों घूर रही हो.. तुम अचानक इतनी बदसूरत कैसे हो गयी... तुम्हारे चेहरे पे इतनी शिकन क्यों है? मुझे घबराहट हो रही है.. तुम्हें ये क्या होता जा रहा है। तुम्हारा चेहरा पीला क्यों पड़ रहा है। देखो तुम्हारी नाक से खून भी बह रहा है... तुम किस सोच में डूब गयी.. कुछ कहती क्यों नहीं। तुम बेहोश हो रही हो, नहीं नहीं बेहोश नहीं, तुम्हारी साँसें चलना बंद क्यों हो रही हैं... क्या तुम मर रही हो, नहीं तुम मर नहीं सकती... नहीं नहीं नहीं !!
ज़ोर की चीख सामने वाले आईने पर पड़ती है और एक पल में आईना चकनाचूर हो निचे बिखर जाता है..
हस्पताल का दृश्य-
एक अधेड़ उम्र अपनी २६ साल की बेटी के सिरहाने पर स्तब्ध बैठा है। उसकी आँखें सूखे रेगिस्तान जैसी दिखाई पड़ रही हैं- सूनी, खाली, नाउम्मीद !! शब्द हलक में ही अटक के रह गए हैं, मस्तिष्क निष्क्रिय। झुके हुए कंधे सूचक हैं कि हिम्मत ने हथियार गिरा दिए हैं। हाथ कांप रहे हैं और कानों के छिद्रों वाले फाटक बंद हो चुके हैं....
माँ लगातार बेटी की छाती को ज़ोर ज़ोर से पीस रही है और ज़ार ज़ार रो रही है..!
डॉक्टर ने हाथ में काग़ज़ात पकडे हैं, उसे मौत का कारण भरना है...
एक अधेड़ उम्र अपनी २६ साल की बेटी के सिरहाने पर स्तब्ध बैठा है। उसकी आँखें सूखे रेगिस्तान जैसी दिखाई पड़ रही हैं- सूनी, खाली, नाउम्मीद !! शब्द हलक में ही अटक के रह गए हैं, मस्तिष्क निष्क्रिय। झुके हुए कंधे सूचक हैं कि हिम्मत ने हथियार गिरा दिए हैं। हाथ कांप रहे हैं और कानों के छिद्रों वाले फाटक बंद हो चुके हैं....
माँ लगातार बेटी की छाती को ज़ोर ज़ोर से पीस रही है और ज़ार ज़ार रो रही है..!
डॉक्टर ने हाथ में काग़ज़ात पकडे हैं, उसे मौत का कारण भरना है...
"अत्यधिक मानसिक दबाव.. झेलने के स्तर से बहुत ऊपर व उच्चतम रक्तचाप। ये ड्यू टू मेजर हार्ट स्ट्रोक इंस्टैंट डेथ का केस था"
उसने लाल स्याही से रिपोर्ट पर हस्ताक्षर कर अपना काम निबटा लिया है, फाइल अब बंद हो चुकी है..!!
नोट: इस कहानी का नारीवाद से कुछ भी लेना देना नहीं है, यहाँ किरदार पुरुष भी हो सकता था..!
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