नव खोज सा प्रतीत होता मुझको मेरा कारवां,
चक्षु प्रकाशित, ह्रदय उत्साहित, मुदित मन आगे बढ़ा,
कण-कण समेटे राह में रख पद कमल आगे बढ़ा...
रात सितारों ने झिलमिला कर थी नई जो राह सुझायी,
उस ही पथ, सर पर मुकुट, पुष्प-माल गल आगे बढ़ा...
चाप मथ सिन्दूर गढ़, ध्वज लाल संग आगे बढ़ा,
नभ तक पहुँच, रुक कर क्षणिक फिर ले विदा आगे बढ़ा...
पवन रथ पर हो सवार, काट घन आगे बढ़ा,
पहुँच प्रकाश नगरी जहाँ उन्मुक्त बह रही गगन गंगा,
लगा डूबकी, अमृतव चख, फिर प्रफूलित मन आगे बढ़ा...
अतुलित प्रसन्नचित, होम कर व्यथा, अनुराग सब मोह सुख,
बेराग के अंगोछे में कर हवन दुःख आगे बढ़ा...
अश्रु श्राद्ध कर, तार स्वयं को, नव प्रभात सन्मुख चला,
चक्षु प्रकाशित, ह्रदय उत्साहित, मुदित मन आगे बढ़ा...