मेरी मंटो से खासी दोस्ती हो गयी है, यूँ तो उसे मरे कई ज़माने बीत गए, लेकिन उसके ये शब्द "हो सकता है की सआदत हसन मर जाये मगर मंटो हमेशा जीता रहेगा" हर वक़्त ये एहसास दिलाते रहते हैं की वो खुद को कितना खूब जान चुका था। उसे हिसाब था की उसके द्वारा लिखा गया एक एक शब्द इतिहास बन जायेगा और मंटो हमेशा जाना जायेगा।
होता भी क्यूँ न, मंटो की लेखनी, उसकी शैली उसे हमेशा एकाकी रखती है। वह बहुत आम होते हुए भी ख़ास था। उसका अनूठा द्रष्टिकोण व मार्मिकता उसे उसके जानिब बहुत सारे कथाकारों से अलग करती है। मंटो की कहानियों में तब का समाज मौजूद था, उसकी कहानियों के विषय समाज में फैली हुई त्रुटियाँ थी, उसे बंटवारे का दुख था व महजबी होते हुए भी, महज़ब के नाम पर लोगों के बीच होने वाले फासलों को मंटो ने खूब पहचाना और बखूबी अपनी कहानियों में उतारा। मंटो स्पष्टवादी व खुले विचारों वाला एक साधारण सा बल्कि यूँ कहें की पागल सा दिखने वाला पर एक असाधारण विचारक था। उसे अपने आस-पास होने वाली सभी क्रियाएं साफ़ साफ़ नज़र आती थी। एक सामान्य सी जिंदगी जीने वाली एक ग्रहणी से कहीं ज्यादा उसे सड़कों व चकलों पर जिस्म बेचती वेह्श्याओं पर अधिक हमदर्दी महसूस होती थी, उसका चित्रण भी वो बिल्कुल सटीक व स्पष्ट किया करता था। वह समाज में छुपे हुए नंगेपन को बिल्कुल बेशर्मी से समाज के आगे रख देता तो उसे अश्लील लेखन व कानून की खिलाफत करने का कुसूरवार समझा जाता और कई बार तो इस बाबत उसे अदालतों में भी घसीटा जाता था। मात्र 43 साल के अल्प जीवन में मंटो की लगभग पांच कहानियों पर कोई उतने ही मुक़दमे ठोके गए, परन्तु उसकी खुली कहानियां उसके जबरदस्त प्रतिरोधक विचार-धारा का स्पष्ट प्रमाण थी। जहाँ पूरे शहर में लोग बंद आँखें लिए, मुह को सिये हुए बेचारे से बने घूमते थे वहीँ मंटो एक क्रांतिकारी सोच व एक निडर व्यक्तित्व का स्वामी था। उसके लिए कहना बिल्कुल माकूल होगा की अँधेरे में रहने से अधिक वह खुद जलकर दुनिया को उज्वलित करने पर ज्यादा भरोसा रखता था। वह तूफ़ान से घबरा कर आंसू बहाने वालों में से नहीं था बल्कि तेज़ हवाओं की दहलीज़ पर अपने चिराग रौशन करता था।
मंटो सच में पागल था, वो पागल आज कल मेरे दिल के जेलखाने में रहता है।
मगर मंटो क़ैद नहीं हो सकता, जबसे वो दिल में आया है
यूँ लगता है की दिल को पर लग गए हैं, वो कभी उड़ता हुआ फेफड़ो
तक पहुँचता है तो कभी पेट में शोर पैदा करता है।
मंटो को कोई नहीं बाँध सकता
वो आज़ाद है, यह ही मंटो में ख़ास है।
मंटो के उन्मुक्त लेखन की एक झलक उसी ही की एक छोटी सी कहानी से।
"करामात
लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरु किए.
लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे,
कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पाकर अपने से अलहदा कर दिया, ताकि क़ानूनी गिरफ़्त से बचे रहें.
एक आदमी को बहुत दिक़्कत पेश आई. उसके पास शक्कर की दो बोरियाँ थी जो उसने पंसारी की दूकान से लूटी थीं. एक तो वह जूँ-तूँ रात के अंधेरे में पास वाले कुएँ में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा ख़ुद भी साथ चला गया.
शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गये. कुएँ में रस्सियाँ डाली गईं.
जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया.
लेकिन वह चंद घंटो के बाद मर गया.
दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए उस कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था.
उसी रात उस आदमी की क़ब्र पर दीए जल रहे थे."
--सआदत हसन मंटो
आज तक मैंने जितना भी थोडा बहुत मंटो को पढ़ा, उसकी जीवनी को यू-ट्यूब पर देखा, उसके बारे में लोगों से जो भी सुना वह सब स्पष्ट कर देता है की मंटो बहुत थोडा जिया पर उसने अपने होने को निभाया था। वह कभी बंध कर नहीं रहा, आज़ाद पंछी की तरह जो चाहा वो किया। उसने कभी किसी को प्रभावित करने के लिए नहीं लिखा वो लिखता था क्यूंकि वो कुछ बयान करना चाहता था। उसकी हर बात में एक फरमान एक ऐलान शामिल था।