उसने अलग रंग की चार चिड़िया देखीं
एक का नाम स्वप्न
दूसरी कल्पना, तीसरी का आज़ादी व चौथी उम्मीद।
उसने सम्मोहन से चारों को फुसला कर पास बुलाया व उनके पंख नोच डाले और इस तरह सदा के लिए उनकी दर्शनीय छवि को अपनी नज़रों तक ही सिमित कर लिया।
एक का नाम स्वप्न
दूसरी कल्पना, तीसरी का आज़ादी व चौथी उम्मीद।
उसने सम्मोहन से चारों को फुसला कर पास बुलाया व उनके पंख नोच डाले और इस तरह सदा के लिए उनकी दर्शनीय छवि को अपनी नज़रों तक ही सिमित कर लिया।
एक दिन उसने अपनी नोट बुक निकाली,
और अब एक-एक करके उनकी सुंदरता को शब्द देने लगा...
कहीं एक जगह जहाँ "उड़ान" लिखना चाहा वहां रुका।
खेद भाव में लिप्त मायूसी में सर झुका, दुख के साथ स्मरण करके सामने की खिड़की पर जहाँ से विस्तृत आकाश था, अपनी नज़र शुन्य पर टिका कुछ सोच कर बाहर निकला।
और अब एक-एक करके उनकी सुंदरता को शब्द देने लगा...
कहीं एक जगह जहाँ "उड़ान" लिखना चाहा वहां रुका।
खेद भाव में लिप्त मायूसी में सर झुका, दुख के साथ स्मरण करके सामने की खिड़की पर जहाँ से विस्तृत आकाश था, अपनी नज़र शुन्य पर टिका कुछ सोच कर बाहर निकला।
कुछ समय पश्चात कहीं से स्वर्णिम व रत्नों से अलंकृत अपनी चमक से चौंधाने वाले एक भव्य पिंजरे के साथ वापिस लौटा। भाव बचा कर बड़े स्नेह से उसने संवेदनाओं के दो मुलायम 'पर' तैयार किये व उन्हें पिंजरे के दोनों तरफ जोड़ दिया।
भरे मन व भीगी आँख से चारों को अंदर रख, चिटकी लगा खिड़की की ओर बढ़ने लगा... कुछ देर शांतचित उनको निहारता रहा व पवन वेग को महसूस कर पिंजरे को नीचे की और लटका दिया। उसने पुनः विचार किया पिंजरे को छोड़ा नहीं बल्कि अंदर खींचा।
कहीं से एक छोटे से कागज़ के टुकड़े पर
अपनी आकर्षक लिखावट से कुछ लिखा।
भरे मन व भीगी आँख से चारों को अंदर रख, चिटकी लगा खिड़की की ओर बढ़ने लगा... कुछ देर शांतचित उनको निहारता रहा व पवन वेग को महसूस कर पिंजरे को नीचे की और लटका दिया। उसने पुनः विचार किया पिंजरे को छोड़ा नहीं बल्कि अंदर खींचा।
कहीं से एक छोटे से कागज़ के टुकड़े पर
अपनी आकर्षक लिखावट से कुछ लिखा।
टुकड़े को पिंजरे से चस्पा कर वह फिर खिड़की की तरफ बढ़ा और इस बार "कविता" नामक पिंजरा सदा के लिए मुक्त कर दिया।
कुछ देर बाद जाने क्या सोच कर उसने खिड़की से नीचे झाँका। वहां कुछ नहीं था, और अब उसने अपनी नज़रे ऊपर की तरह घुमाई,
आसमान साफ़ था !
कुछ देर बाद जाने क्या सोच कर उसने खिड़की से नीचे झाँका। वहां कुछ नहीं था, और अब उसने अपनी नज़रे ऊपर की तरह घुमाई,
आसमान साफ़ था !