Tuesday, June 11, 2013

उदासी..





चिरागों की भीड़ में घीरा
लाचार अँधेरा चुप सा 
अकेला कंपकपा रहा है,
ये डर धीरे धीरे 
रेंगता हुआ नसों में
पिघलता हुआ 
उतरा ही जा रहा है,
वो कहते हैं की आज जश्न है, 
शाम रौशन है, 
महताब मेहरबान है,
मगर कोई हो जो पूछे 
सन्नाटों से भी हाल उनका, 
कितना कुछ कहते थे कभी 
आज सब के सब बेजुबान हैं..

1 comment:

  1. खूबसूरत .... चमकीला अंधेरा ..... कीप इट अप अँड अप ... :)

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