Friday, December 20, 2013

"लैटर टू सांता क्लॉज़"

डियर सांता नमस्कार,

"क्रिसमस" के आते ही सांता क्लॉज़ का इंतज़ार बच्चे, बड़े और बूढ़े सब को रहता है। सांता आप मुझे पर्सनली एक विचित्र मानव लगते हो, शीत युग से बचे रह गए अकेले बाशिंदे, जो सिर्फ बर्फ पड़ने पर ही निकलते हैं, पता नहीं बचे वक़्त कहाँ रहा करते हैं। ईसाईयों के हनुमान, गणेश सरीखे संकटमोचक, रिद्धिसिद्धि दाता और विघ्नहर्ता जो लोगों को उम्मीदें बाँटता फिरता है, बिल्कुल मेरी तरह, हाँ जी, बिल्कुल मेरी ही तरह पर ये बड़ा दिलचस्प है कि मैं उम्मीदें बांटता हूँ इसलिए कि मैं एक होपलेस आदमी हूँ पर आपकी इस कृपा के पीछे का कारण मैं आजतक नहीं समझ पाया। और दूसरी दिलचस्प बात कि लोग बड़ी बेसब्री से पूरे साल क्रिसमस का इंतज़ार करते रहते हैं कि आप उनसे मिलने आयें और मुझे यहाँ साला एक कुत्ता भी नहीं पूछता। खैर बड़ी अजीब बात है न कि दुनिया इतनी टेक्निकल होते हुए भी, आज भी श्रद्धा व समर्पण पर ही टिकी हुई है। आज ईमेल, सोशल नेटवर्किंग के युग में भी बच्चे सांता को चिठियाँ लिखते हैं, हाउ बैकवॉर्ड ??
क्या सांता का कोई फेसबुक प्रोफाइल नहीं??

आज ऐरे-गैरे, उलजलूल नेता से लेकर अभिनेता, खिलाड़ी, अनाड़ी, पत्रकार साहित्कार, टेररिस्ट से लेकर एक्टिविस्ट, डॉक्टर, हिमांचली दवा खाने से लेकर हड्डी जोड़ने वाले पहलवान तक सब ट्विटर पर मौजूद हैं तो सांता क्यों नहीं?? यहाँ हिंदुओं के शनिदेव से लेकर हनुमान जी तक के न जाने कितने ही पेज मेन्टेन हैं। और तो और श्रद्लुओं का ताँता भी किसी मंदिर कि भीड़ से कम नहीं है, तकनिकी विकास कि ही देन है कि अब भक्तों को अपने भगवान् से मिलने मंदिर तक जाने कि ज़हमत नहीं उठानी पड़ती, सिर्फ एक "लाइक" और भगवान् खुश, एक शेयर और आपकी मनोकामना पूर्ण। भगवान् भक्त, मंदिर सब एक ही प्लेटफार्म, एक ही साईट पर एक्टिवली वर्किंग हैं। कोई हैरत नहीं कि कुछ समय बाद मंगलवार को बूंदी का प्रसाद भी यहीं बटने लगे या शुक्रवार को संतोषी माता की कथा भी यहीं पढ़ी जाए। कितना विचित्र है कि भगवान भी अब पब्लिक फिगर कि केटेगरी में आने लगे हैं, जिसके पेज पर जितने लाइक्स उतना बड़ा भगवान।
"ज्युकरबर्ग इज़ ऍन ओनली रेवोलुशनरी।"

खैर पेज तो सांता के भी बतेरे नज़र आते हैं पर मुझे क्या आज तो इस लेख के माध्यम से मैं सांता को आधार बना कर अपने खुद के समाज पर व्यंग कर रहा हूँ, और साथ ही खुद के हालत-ए-ज़िन्दगी भी बयां कर रहा हूँ, बहुत पुरानी फ़र्स्टशन है, मौका भी अच्छा है।

हाँ तो हम गरीब बच्चों के मसीहा श्री सांता क्लॉस जी(मेरी उम्र २६ साल है और जल्द ही मेरे घर वाले मुझ पर शादी का दबाव डालने वाले हैं, अभी कोई बढ़िया नौकरी भी नहीं है, और लड़कियों से मेरी बनती भी नहीं है, खैर घर वालों को कौन समझाए इसलिए खुद को बच्चा कहे जाता हूँ, कि मामला लम्बा टल जाये। "जस्ट किडिंग" बट हविंग सैड देट, आई वांट टू मेंशन वन मोर थिंग देट जोक इज़ ए वैरी सीरियस थिंग) आप ये बताएं कि आप सिर्फ खिड़की के रस्ते ही क्यों आते हैं, और अगर आते हैं तो कभी मेरे घर क्यों नहीं आये, मेरा पूरा बचपना जो अब भी बरक़रार है आपके इंतज़ार में बढ़ता ही जा रहा है, पर अफ़सोस कि मेरी हालत देख कर भी आपका दिल नहीं पसीजा, आप आज तक नहीं आये।

अब तो हाल ये है कि मेरी ही उम्र का एक लड़का मेरे सफ़ेद बालों को देख कर चौंक जाता है और बहुत देर तक सोच समझ लेने के बाद फ्री कि राय देकर निकल जाता है कि "बेटा नमक सर पे मत गिराया करो, अभी से बाल सफेद होना अच्छा नहीं"
अरे हमारे यहाँ तो नेता भी हर पांच साल में एक बार आ जाते हैं और हमारा हाल चाल पूछते हैं, झुक के सलाम भी कर लेते हैं और "आप ही की दया है, आप ही कृपा है" जैसे मीठे मीठे शब्द बोल बोल कर हमें और हमारे परिवार वालों को स्पेशल फील भी करा देते हैं। पर पता नहीं आप किस खेत कि मूली हैं, विदेशी हैं शायद तभी इतना एटीट्यूड है। मैं तो कहता हूँ आप यहाँ आ जाओ भारत, और जैसी आपकी साख है आप चुनावों में खड़े हो जाओ, अरे नहीं सोचना नहीं है अब ज़रूरी नहीं कि किसी नेता का बेटा ही चुनावों में खड़ा हो सकता है "आम" लोगों के लिए भी स्कोप है, क्राइटेरिया केवल दो ही है ईमानदारी और जज्बा। लगे हाथ आपको चुनाव चिन्ह भी सुझा देता हूँ "वाईपर" भ्रष्टाचार कि सफाई तो करनी ही है न। मेरा बस चलता तो आपको "झाड़ू" देता पर वो पहले से ही बुक्ड है, बड़े ईमानदार लोग हैं बेचारे। खैर आपको ज्यादा कुछ नहीं करना, २०१४ में लोक सभा चुनाव होने जा रहे हैं, किसी भी कांग्रेस पार्टी के गढ़ से खड़े भर हो जाना, चाहे कुछ न कहना, निश्चिंत रहिये लोग बहुत भरे बैठे हैं वोट आपको ही मिलेंगे और फिर क्या बन गए आप "एमपी" जम कर वाईपर चलना, पर हाँ एक और बात, भूल के भी गुजरात मत चले जाना वहाँ आपकी दाल नहीं गलने वाली, वहाँ पहले से ही खूब विकास है। रात में हाईवे कि सभी बत्तियां जलती हैं, मज़ाक है क्या, ग्रोथ कहते हैं इसे। गुजरात में क्या पूरे देश में नमो कि लहर है, "नमो" नाम कि नदी का वेग इन दिनों त्रासदी के वक़्त कि उत्तराखंड कि अलखनंदा से भी अधिक तेज़ है, बस अपनी तो भगवान से यही प्रार्थना कि अब कुछ उजाड़ न हो। (उत्तराखंड त्रासदी को याद करते हुए एक सेकंड का मौन)

हाँ तो सांता जी देखो भारत आज भी एक समृद्ध देश है और भ्रष्टाचार, बलात्कार, आत्म-हत्या जैसे व्यापक मुद्दों से फल-फूल रहा है। बलात्कार से शुरू करते हैं, ये एक ऐसी हॉबी है जो भारत में बहुत कॉमन है। प्राइवेट बस कंडक्टेर से लेकर, फ़िल्म अभिनेता तक(नाम याद नहीं पर पता नहीं, कोई आहूजा शायद), "तेज़" व एक्टिव पत्रकार, लेखक, नेता से लेकर न्यायाधीश तक सब इस मधुर अपराध के जुर्म में या तो जेल में बैठे हैं या सजा काट चुके हैं। न न इसे गलत न लें, एक्चुअली ये कोई इतना बड़ा क्राइम नहीं है, बल्कि इसे तो महिला सशक्तिकरण कि प्रक्रिया कि तरह लिया जाता है जो आजकल अपनी पीक पर है, और सभी सोशल एक्टिविस्ट व पब्लिक फिगर्स इसमें अपना सहयोग देने में जी जान से जुटे हुए हैं (दीस इज़ नॉट फनी, शेम ऑन यू कल्प्रिट्स)। सांता जी आप से कर जोड़ कर अनुरोध है कि आप इस सोशल एक्टिविटी से थोडा दूर ही रहें।

खैर अगला महत्वपूर्ण मुद्दा है "भ्रष्टाचार"। घोटाले, कॉर्पोरेट घोटाले, खेलों में घोटाले, कोयले, दूध, दही, लहसन अलग-अलग घोटाले, चारे में घोटाले, थ्री जी, फोर जी, ए जी, ओ जी, लो जी सुनो जी सब बर्बाद, सब तरफ मिलावट "सांता जी यू मे नोट बिलीव बट इंडिया इज़ ए वैरी डाइवर्स कंट्री"
सर आप गहराई में जायेंगे तो पाएंगे कि ये घोटाले करने के पीछे के कारण भी उतने ही डाइवर्स हैं, एक आदमी बड़ी मुश्किल से सातवीं, आठवीं में आठ दस बार फ़ैल हो कर, बाप के दम पर कॉलेज से जोर जबर्दस्ती कर बी.ए., ऍम. ए. कि फर्जी डिग्री बनवा कर, न जाने कितने लाखों रुपए दे कर एक टुच्ची सी सीट प्राप्त करता है और झूठे-झूठे आश्वासनों का मन्त्र जाप कर-कर के भोली जनता को फसाता है तब कहीं जा कर वो एक "नेता" बन पता है, "स्ट्रगल कहाँ नहीं होता" और अब जब इतने स्ट्रगल के बाद वो बेचारा एक नेता बन गया है तो क्या उसका इतना सा हक़ नहीं बनता कि वो एक छोटा मोटा, सौ, दो सौ करोड़ का एक आम सा घोटाला कर ले और अपना बाकी जीवन थोडा आराम से बिताये। खैर आराम किस की जिंदगी में है भईया। अब मुझे ही लीजिये, साला मैं तो बचपन से ही फुर्सत में था। न मेरा पढ़ने लिखने में मन लगता था, न मुझे कोई और हुनर था। कद काया से भी दुबला पतला था तो कोई मेहनत का काम भी मुझसे नहीं होता था, दिमाग तो लेह-लदाक के ग्लेशियर कि तरह जमा हुआ था, जहाँ पूरे साल कोई रिसाव नहीं होता था। बड़ी अजीब बात है की कुछ भी न करते हुए भी मुझे आज तक आराम नहीं मिला। खैर छोड़ो नेताओं पर आते हैं, घोटाला नेता सिर्फ पैसा कमाने के लिए ही नहीं करते बल्कि उन्होंने भारत में प्रचलित एक कहावत को बड़ा सीरियसली ले लिया है "कि बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा" तभी पकड़े जाने के बाद भी बड़े गर्व से प्रेस कांफ्रेंस में इंटरव्यू दे जाते हैं साहब। उस दिन नहाने धोने का भी विशेष ध्यान रखते हैं और साफ़-सुथरे कपडे पहनते हैं, अरे भाई इज्जात का सवाल है, "व्यक्तित्व में दाग है तो क्या हुआ पर कुर्ता चमकना चाहिए।"

सांता जी इन नेताओं को भी छोड़ो, इनका कोई दीन ईमान नहीं। आप ये बताओ एक्टिंग वगैरह आती है, फिल्मों में काम करोगे?? देखो नहीं भी आती फिर भी कोई बात नहीं टैलेंट इतना ज़रूरी नहीं। हमारे यहाँ तो ऐसे भी हीरो हैं जो बोल बोल कर इतना पका चुके हैं कि अब उन्हें संवाद मिलने ही बंद हो गए हैं, हर फ़िल्म में गूंगे का रोल करते हैं और अब ज्यादा सक्सेसफुल हैं। देखो घबराने कि कोई बात नहीं दरअसल यहाँ एक्टिंग कि मांग ही नहीं है, मुद्दा सिर्फ एक है कैसे भी हर फ़िल्म में सौ, दो सौ, तीन सौ करोड़ कमा कर रिकॉर्ड बनाना। एक्टिंग कि इतनी वैल्यू नहीं है जितनी कि आपके स्टारडम और साख कि है, और आप तो पहले ही इतने फेमस हैं कि आपको तो अपने नाम के पीछे खान लगाने कि भी ज़रूरत नहीं और ये अच्छा भी नहीं लगेगा "सांता खान" या "क्लॉज़ खान" या "सांता क्लॉज़ खान" न मज़ा नहीं आया। आप सांता क्लॉज़ ही रहो सूट्स यू। आप तो धूम मचा दोगी। ओह लेकिन इस बार तो धूम आमिर मचा रहा है, पर निराश होने कि बात नहीं आप फोर्थ में ज़रूर ट्राय करना। आपको ये भी नहीं कह सकता कि स्पोर्ट्स में ट्राय कर लो एक तो आपकी उम्र का ख्याल है और दूसरा यहाँ इतनी बर्फ ही नहीं पड़ती कि कोई आईस स्पोर्ट्स होता हो। यहाँ हॉकी से शुरू करके, वॉलीबॉल से गुजरकर, टेनिस पर थोडा रुक कर फाइनली आप क्रिकेट पर ही पहुंचेंगे। "इंडियंस आर वैरी पैशनेट अबाउट क्रिकेट, दे डू नॉट हैव टू डू एनीथिंग विथ स्पोर्ट्स।"


सांता सर मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ आप तो बहुत फेमस आदमी हैं, कमाल कि बात है न कि आप न हो कर भी फेमस हो और मैं हो कर भी बर्बाद। खैर आप पर तो कई फ़िल्में भी बनती रही हैं, एक आधी तो बचपन में मैंने भी देखी है। अब तक मेरी इतनी बड़ी चिट्ठी को पढ़ कर आप ये भी समझ ही गए होंगे कि मुझे लिखने का शौक है। हाँ सर बात ऐसी है कि मैं एक स्क्रिप्ट राइटर रह चूका हूँ। बर्बाद ही सही पर कई स्क्रिप्ट्स लिखी हैं मैंने। थिएटर से जुड़ा एक रंग कर्मी हूँ पर बाजारवाद कि मार झेल रहा हूँ। मेरी नाकामी ये रही है कि मार्किट को क्या चाहिए मैं ये नहीं समझ पाया, प्रोडक्ट कैसे बेचा जाए मुझे ये नहीं आता हालाँकि कॉल सेण्टर में काम कर चुकने के बाद भी इस मामले में कच्चे का कच्चा ही रहा। पर इसमें मेरी गलती बिल्कुल नहीं है। ये लिखने का शौक मुझे आनंद और प्यासा जैसी फ़िल्में देख कर लगा है और अब जब ये शौक पनप गया तो मुन्नी को बदनाम करवा पाना हमसे न हो पायेगा। आपसे बस इतनी ही दरख्वास्त है कि भविष्य में आप पर कोई फ़िल्म बन रही हो तो वो स्क्रिप्ट आप प्लीज मुझसे ही लिखवाएं। वैसे भी आपका नाम इस्तेमाल कर कर के मैंने कई ऐड जिंगल लिखे हैं। अगली बार लिखूंगा तो आपको एक भेजूंगा। चलिए अब आप से विदा ले रहा हूँ आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा।

विथ लव एंड क्रिसमस विशेस
मुकेश चन्द्र पाण्डेय 

1 comment:

  1. :)
    एक मुस्कान तैर गई, धीरे से ओंठो पर :)

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