Sunday, April 13, 2014

तीन छोटी कवितायेँ

1.
कविता कोई टखियाई वैश्या नहीं 

जिसे सुन्दर-सुन्दर शब्दों में लपेट कर
भिन्न-भिन्न उपमाओं, अलंकारों से सजा कर 
व बालों में गुलाब खोंस कर 
वाह-वाही बटरोने के लिए बाज़ार में छोड़ दिया जाए। 

कविता की क्षमता अस्त्र सरीखी है,
एक सशक्त अभिव्यक्ति! 
जो लाचार नहीं बल्कि स्थिति का सत्य 
उसका सबसे बड़ा प्रमाण होती है।
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2.
मेरी कविता अचूक होगी, 
कई अवरोधों को भेदती सीधी जा गड़ेगी 
उन छातियों में जहाँ दिल होगा... 

क्योंकि आंतरिक घाव कभी नहीं भरते 
बल्कि वक़्त द्वारा रचे षड्यंत्र के अंतर्गत 
उनके साथ जीने की बुरी आदत पड़ जाती है।

इसलिए चोटों को सहलाने वाले कोमल हाथों से 
ज़रूरी है ख़ुरदुरे स्पर्श,
सहानुभूति से अधिक ज़रूरी है धिक्कार,
मरहम से अत्यधिक ज़रूरी है नमक !

जिस प्रकार मृत्यु जैसे आरामदेह विकल्प से
कहीं अधिक ज़रूरी है दुष्कर जीवन..!!
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3.
अवसादों से निरंतर जूझना,
लड़ते-लड़ते गिरना, फिर उठना,
औंधे मुहं गिरना, उठ-उठ कर झड़प करना, 
मुठभेड़ों में चारों खाने चित हो पड़ना, 
चाहे धूल चाटना या रगड़ खाना, 
या फिर विचारशून्य हो फड़फड़ाते रहना। 
मगर फिर-फिर उठना, कलम पकड़ना, 
गुजरना, नए अवसर गढ़ना, 
तुम लड़ते-लड़ते जीवित रहना।

क्योंकि जीवन नियति द्वारा 
स्थापित कोई स्वर्ण प्रतिमा नहीं 
बल्कि संघर्षों की चाक पे गुंथा 
अवसरों का बर्तन होता है

4 comments:

  1. o mere krantikaari!! nazar utar loon eri main bhai!! zabardast likhi hai!!

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  2. बेहतरीन..........................
    कविता की क्षमता अस्त्र सरीखी है,
    एक सशक्त अभिव्यक्ति!
    जो लाचार नहीं बल्कि स्थिति का सत्य
    उसका सबसे बड़ा प्रमाण होती है।

    बहुत बढ़िया !!
    अनु

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  3. कविता के विभिन्न आयाम .... बहुत उम्दा

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  4. कविता की बहुत सटीक परिभाषा दी आपने मुकेश जी हर तरीके से उत्कृष्ट :)

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