Monday, May 12, 2014

"चकले के बाहर"

चकले के बाहर दलालों की भारी भीड़ जुटी हुई है, तनाव भरा माहोल है। 
प्रधान दलाल : आजकल इन वैश्याओं की मांग कम हो रही है, सबका रुझान फाइव स्टार होटलों वाली अंग्रेजी ब्रीड की तरफ बढ़ रहा है. कुछ करना होगा वरना अब धंधा बदलने का टेम आ गया है..
दूसरा दलाल: (ऊपर सीढ़ियों पर बैठी एक अधेड़ उम्र ढल चुकी वैश्या की तरफ देखते हुए) ऐसे हाथ पे हाथ धरे बैठे रहने से कुछ नहीं होगा। आम को उतना ही चूसा जा सकता है जितना उसमे रस हो.. अब गुठलियाँ और नहीं बिकने वालीं।
अन्य दलाल : वो बस्ती के पीछे वाले मोहल्ले के दूसरे मकान में एक बहुत खूबसूरत लौंडिया है.. कंचा पीस उम्र १९ साल, कमर कूल्हे सब अपनी जगह... रस्ते से गुज़रते हुए रोज़ दिख जाती है, आँखों में असर है, कॉलेज जाती है, 
… क्या ख्याल है उठा लें... धंधा ज़ोर पकड़ जायेगा।
तभी भीड़ के बीच से लगभग चालीस, पैंतालीस साल का एक दलाल मुह में दबी ब्लेड निकाल कर अन्य दलाल का गाल चीर देता है.. खून छल छला के उछलता है और अन्य की सफेद कमीज़ लाल हो जाती है.. 
"भैनचोद वो मेरी बेटी है... वो डॉक्टर बनेगी रंडी नहीं।" 

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