Tuesday, May 20, 2014

ज़हरीला रंग

शाम ढलते दर्द चढ़ता है
रात होते याद आती है..
जिस्म जाने कहाँ पड़ा हुआ, 
शराब रगों तक जा पहुंची है..
आँखें पथराने लगी हैं आहिस्ता, 
ज़हर तीरता है समंदर में.. 
आसमाँ की इंतहा अब और क्या होगी,
बाहें कड़क के टू/ट चुकी हैं कन्धों से.. 
बुझी-बुझी सी सासें उतरती चढ़ती हैं,
रह-रह के चूल्हों से उठते हैं गुबार आहों के..

सुनो दिल से न लगा लेना इश्क़ कोई
नीले रंग के निशाँ पक्के होते हैं......!!

1 comment:

  1. Round the sadness of my nights
    Breaks a carnival of lights
    But amid the gleaming pageant
    Of life's gay and dancing crowd
    Glides my cold heart like a spectre
    In a rose encircled shroud !

    नीला रंग रॉयल होता है। जो रॉयल होता है वही नीला होता है। प्रेम भी रॉयल। दर्द और अवसाद भी। जब आंसू निकलते हैं न मुकेश तो एक एक बूँद अपने में कितने सैलाब समेटे रखती है ये ख़ुद आसूं सहेजे रखने वाला भी कहाँ जानता है? दर्द को दर्द कहकर प्रेम को प्रेम कहकर नकार सकते हैं बस वे लोग। और हम? हम बस इंतज़ार करेंगे, हम इंतज़ार करेंगे...

    http://youtu.be/Aesc1V1Axcs

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