Monday, May 5, 2014

"उपर कोई है तो उसका शुक्र है"



मैं किसी प्रेरणादायक कविता के मसौदे से
ऐसा नहीं कह रहा कि-
मैं खुद को कमतर आंक कर आगे बढ़ना चाहता हूँ..!!
मैं जानता हूँ कि मेरे आगे अपेक्षाओं का पूरा विध्यांचल है,
परन्तु मेरे पीछे अतीत की वो गहरी खायी छूट गयी है
जिसे मैं बिना सांस फुलाए एक ही छलांग में फांद कर आ रहा हूँ।
ऊपर कोई है तो उसका शुक्र है मैं बच गया हूँ
परन्तु मेरा शोक उन कीमती चीज़ें के प्रति है जो उस खायी के अंतर में गिर खो गयी हैं।
बहरहाल खुद को कमतर आंकने का मेरा तर्क सिद्ध हुआ।
क्योंकि मैं अतीत में हुई हानियों के लिए शोकाकुल हूँ
और अब तक निर्लिप्त नहीं हो सका हूँ
इसलिए आगत की ही तरह अनंत, अनिश्चित अपेक्षाओं ने मुझे भरमाने हेतु
एक रंगीन इंद्रजाल बुन कर तैयार कर दिया है,
हरियाता "विध्यांचल"
और मुझे इसकी उबड़ खाबड़ पगडंडियों पर चलने को रख छोड़ा है।
उपर कोई है तो उसका शुक्र है कि
भविष्य के गर्त की तरफ भी कोई पगडण्डी जाती है और मुझे चलते रहना है।
दरअसल बात सीधी है कि मेरी आस्था नितांत पर है,
दूरतम, चरम, अनिश्चितता का आखरी सिरा
मुझे "अति" पर भरोसा है
क्योंकि अति एक क्रिया है..अति से कोई क्षति नहीं,
दुखद क्रियाहीनता है।
जिस तरह हानिकारक समय का निकलना नहीं बल्कि समय का अटक जाना है..!!
इसलिए यदि उपर कोई है तो उसका शुक्र है कि समय की प्रकृति बहना है।।

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