Friday, September 25, 2015

"आलां"


"इस बार की छुट्टी बहुत भारी लगी, वक़्त की रफ़्तार प्लेन में बैठ कर पता नहीं चलती, वक़्त को आगे पीछे रिवाइंड करने से पता चलता है कितना कुछ कितने थोड़े से वक़्त में बाकी रह जाता है" आरिफ मियां एक सुस्त जहाज़ में बैठे अपने खालीपन को विहस्की के घूँट साथ टटोल रहे हैं.... ये खालीपन यूँ ही नहीं आता, जो हमेशा से ही अकेला हो वो कभी अकेला नहीं होता, अकेलापन महसूस करने के लिए पहले पूरी इंटेंसिटी से किसी के साथ को जिया जाना ज़रूरी है.. देयर इज़ ए ह्यूज डिफरेंस बिटवीन बीइंग अलोन एंड लेफ्ट लोनली।

खालीपन असल में कभी खाली नहीं होता वह एक मर्तबान होता है, महकती यादों से भरा हुआ, किसी के साथ बिताये कुछ ज़िंदा पलों को कभी आपने बड़े चाव से चखा होता है व जिनकी लजीज़ी आपके स्वाद में अब भी बरक़रार होती है और जिस लज़्ज़त को आप अब उसकी महक से महसूस करते हैं... बिछड़ने को डार्क रोमांस का नाम दिया गया है, प्रेम के उस पल में जहाँ आप बहुत दूर हैं फिर भी आधे आधे एक दूसरे पास छूटे हुए हैं... प्रेम वाकई एक नैसर्गिक चीज़ है, एक कोमल पंख जिसे सहेज के हम अपनी सबसे पसंदीदा किताब के बीच महफूज़ कर लेते हैं, एक खाली एनवलप जो कुछ कच्ची पक्की इबारतें रख भर देने से से अपना अस्तित्व प्राप्त करता है या फिर पुरानी "तस्वीरें" जिन पर उन पलों के तमाम रंग कैद होते हैं और जो गर्द हटाते ही फिर से एक एक करके हमारी नज़रों के सामने एक मोशन की तरह चलने लगते हैं.. खैर आरिफ मियां अपना एक बहुत बड़ा हिस्सा आलां को सौंप आये हैं... इस बार की यात्रा में एक बेचैनी है... पहली बार वापसी खटकती हुई महसूस हो रही है और उनकी नज़र रह रह के तस्वीर से झांकती आलां पर जा कर ठहरती है... आलां बला की खूबसूरत है.. आलां की सबसे ख़ास बात ये है कि वो स्त्री है, एक पूर्ण स्त्री। स्त्रीत्व को केवल चरम से ही परिभाषित किया जा सकता है... एक स्त्री तमाम भावों को अपने अंदर एक ग्लेशियर की तरह जमाये रखती है.. जब तक कि किसी सुखद स्पर्श का ताप दिल को न छुए व वे सभी भाव उस जादुई लम्स से धीरे धीरे रिसने न लगें।
और अक्सर वह आंच हम तक पहुँचती है, आरिफ मियां की हथेलियाँ नरम हैं वे एक पल में ही आलां के हृदय पर की बरसों पुरानी ठिठुरन को एक विचित्र ऊष्मा से भर देती हैं और आलां एक दो मुलाक़ातों में ही पिघलने लगती है.. एक अरसे से थकी हुई वह देह टूट कर आरिफ मियां की बाहों में इस तरह गिर जाना चाहती है जैसे वे कोई सदियों पुराना भरोसेमंद दरख़्त हो और जिसके तले अल्लाहताला ने आलां के सुकून की सेज बिछाई हो...लेकिन इस जुड़ाव की ख़ास बात सीमायें हैं.. दोनों सतर्कता से अपनी अपनी रेखाओं को संभाले हुए हैं.. इन्होने प्रेम की सूक्ष्मता को समझा व अपने अपने दयारों में रह कर इसे रजामंद किया।

और इस तरह यह दो तरफ़ा कहानी है, आरिफ मियां भी आलां के प्रभाव में कुछ इस ही तरह कैद हैं कि अब उनके कैमरे को कोई और सूरत राज़ नहीं आती, आलां की चक्की से पैदा होती वो रगड़ उसके दिल की कसमसाहट बन गयी है, आलां के बुक को होंठों से छूते ही वह प्यास अब जीवन भर के लिए तृप्त हो गयी और वे बड़ी बड़ी आँखें जिन्हें वे तस्वीरों पर छुए जा रहे हैं जैसे दो चिराग हों जिनसे उनकी राहें जगमगाने लगी हैं.. सब कुछ अपने आप सुलझ गया है.. मानो वह लम्बी तलाश एक पल में ही पूरी हो गयी हो और आरिफ की रूह अपने मकाम पर खड़ी मुस्कुराने लगी हो... लेकिन कुछ चीज़ें समझते देर हो जाती है, नज़दीकियां कितनी हो चुकी अक्सर फासलों से समझी जाती हैं...
छुट्टियां अब पूरी हो चुकीं। आज आरिफ मियां को निकलना है.. वे आलां के आँगन में खड़े उससे रुखसत अर्ज़ कर रहे हैं... आलां उफान पर है... वह कुछ इस तरह आरिफ मियां को देख रही है जैसे कितना कुछ बकाया है जो उन्हें उसे अदा करना है, जैसे वह अपना हक़ जानना चाहती है और फिर अचानक वह सैलाब जो उसने पहले दिन से अपने सीने में दबा के रखा है यकायक ही उसकी आँखों से फूट पड़ता है.. वह सफ़ेद कुरता जो आरिफ मियां आज पहने बैठे हैं वह आलां ने सिया था... आलां एक स्त्री है, पूर्ण स्त्री वह अपने चरम पर बहती हुई नदी है.. वह कई कई हाथों की अकेली कारीगर है, उसने खुद को सौंप कर प्रेम को चुना है...
आरिफ मियां खिड़की से बाहर झाँक कर एक लम्बी आह भरते हैं और आँखें मूँद लेते हैं...

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