Saturday, January 21, 2012

दिसम्बर की सर्द रातों में



दिसम्बर की सर्द रातों में खाली सडकों में 
सन्नाटे से आती आवाज़ ने राज़ खोला की तुम हो..

घने कोहरे में ठंडी हवा जब चुभती हुई गर्दन पर लगी,
तो एक एहसास ने राज़ खोला की तुम हो..

धुँधले चाँद की हल्की रौशनी में दिखती हुई 
मेरी परछाई ने राज़ खोला की तुम हो..

कंपकपाते होठों से निकली गर्म सांस और मेरे 
मखमली रुमाल के नर्म एहसास ने राज़ खोला की तुम हो..

ठण्ड में सूखी आँख में वो तेरे लिए ठहरे हुए 
ज़ज्बात ने राज़ खोला की तुम हो..



हथेलिओं के मलने से अकड़ी हुई 
मेरी रूह को मिले आराम ने राज़ खोला की तुम हो...

मेरी नींद में तेरे सपने के टूट जाने के डर से,
देर तक मेरे सोने के ख्याल ने राज़ खोला की तुम हो..

तेरे होने की सोच में 
मेरे खोने की आदत ने राज़ खोला की तुम हो..

तेरे चले जाने के बाद भी 
हर रोज़ आती तेरी याद ने राज़ खोला की तुम हो...

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