Thursday, July 4, 2013

जिज्ञासा ही जीवन है

"रोको मत, टोको मत
सोचने दो इन्हें सोचने दो
मुश्किलों के हल खोजने दो"

हाल ही में आई परले-जी बिस्कुट की ये ऐड पता नहीं क्यूँ मेरे दिल में बहुत गहरे रूप से घर कर गयी है..हालांकि मुझे टीवी देखने का शौक नहीं है पर जब कभी भी ये ऐड टीवी पर आ रही होती है तो मैं थोड़ी देर के लिए सभी कुछ छोड़ छाड़ कर बस इसे देखने में लग जाता हूँ और अपने आप को फिर से एक बच्चा बना पाता हूँ..कितने प्यार से ये ऐड बच्चों व उनके माता, पिता तक यह सन्देश पहुंचती है की जब तक ये नन्हें फूल छोटे होते हैं इनको किसी भी आकर में ढाला जा सकता है. इनको आवश्यकता होती है प्रेरणा की, सही दिशा दिखाने की..इनको छोड़ दिया जाना चाहिए इनके ख्वाबों के परों के सहारे..ये उडान इन्हें काफी दूर तक पंहुचा सकती है..मेरे खुद के घर में दो छोटी छोटी बच्चियां है..जिन्हें मैं रोज़ देखता हूँ तो पाता हूँ की जितना इन्हें इनके माता, पिता, टीचर्स नहीं सीखा पाए उतना ये अपने जिज्ञासा पूर्ण बाल हृदय से सिख गए हैं..ये बात सच है की आज टेक्निकल उपकरणों के माध्यम से बच्चे ज्यादा अवेयर हो रहे हैं पर फिर भी नयी नयी चीज़ों  के प्रति इनका बढ़ता  इंटरेस्ट व अपनी कला को दिखाने का उत्साह इन्हें रोज़ कुछ न कुछ नया सिखाने में बहुत सहायक होता है..
और गुलज़ार साहब की लिखी हुई ये छोटी सी मगर रोचक बाल कविता व जिस प्रकार से पियूष मिश्रा जी ने इन्हें गया है सभी बच्चों व उनके अभिभावकों का ध्यान आकर्षित करके उनमें आशा-वाद व आज़ादी की एक नयी उम्मीद पैदा करती हैं.."निकलने तो दो आसमान से जुड़ेंगे" इन शब्दों को सुन सुन कर जैसे मन उड़ान भरने को तैयार हो जाता है व बच्चे ही नहीं हम आपकी उम्र के भी कई नौ-जवानों को फिर से आसमान में ख्वाबों के कबूतर छोड़ने की अप्रत्यक्ष मगर एक खुली सी छूट मिल जाती है..
आँखें उम्मीद के चिरागों से रौशन हो जाती है, व व्याकुल मन की बंजर पड़ी ज़मीन पर आशा सावन की पहली बरसात के जैसी बरसने लगती है..
काफी तारो-ताज़ा एहसास उत्पन्न करते हैं ये शब्द

"रोको मत, टोको मत
रोको मत, टोको मत
रोको मत, टोको मत
सोचने दो इन्हें सोचने दो
रोको मत, टोको मत
सोचने दो इन्हें सोचने दो
होए टोको मत इन्हें सोचने दो
मुश्किलों के हल खोजने दो
रोको मत, टोको मत
रोको मत, टोको मत
निकलने तो दो आसमान से जुड़ेंगे
निकलने तो दो आसमान से जुड़ेंगे
अरे अंडे के अन्दर ही कैसे उड़ेंगे यार
निकलने दो पाँव जुराबे बहुत हैं
किताबों के बाहर किताबें बहुत हैं

बचपन से बड़ा कोई स्कूल नहीं
Curiosity से बड़ी कोई टीचर नहीं"


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